1. प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास मुख अर्थात् मुँह और मुखिया दोनों के स्वभाव
की समानता दर्शाते हुए लिखते हैं कि मुखिया को मुँह के समान होना
चाहिए। मुँह खाने-पीने का काम अकेला करता है, लेकिन वह जो खाता-
पीता है उससे शरीर के सारे अंगों का पालन-पोषण करता है। तुलसी
की राय में मुखिया को भी ऐसे ही विवेकवान होना चाहिए कि वह काम
अपनी तरह से करें लेकिन उसका फल सभी में बाँटे। tulsi ke dohe Bhavarth